कब से बैठे हैं उस धुन की राह में, जिस धुन की गूँज कभी बचपन में आती थी,
ऐसे ही बागीचे में टहलते टहलते मंदिर को जहाँ भेंट अर्चन की जाती थी,
जिस अर्चन के किस्से सुन कर कभी कोई इस तरफ टहलने आया था,
जब ऐसे ही इधर उधर कुछ घटायें छाई थी और किसी ने उसका मज़ाक उड़ाया था,
की है तो वो सूअर उन कमसिन पतली … Read the rest